
सांस क्या है ?
सांस शरीर की अति महत्वपूर्ण आवश्यकता है। व्यक्ति भोजन त्याग सकता है किंतु श्वास नहीं लेना संभव ही नहीं है। इसीलिए योग में कहा गया है, ” श्वास ही जीवन है “। सांस के बिना व्यक्ति जी नहीं सकता लेकिन श्वास को कुछ समय के लिए रोका जा सकता है पर इसे बिल्कुल बंद नहीं किया जा सकता।
सांस और श्वसन में अंतर
श्वास श्वसन क्रिया से संबंधित है, जिसे दो शब्दों में समझाया जा सकता है: सांस लेना तथा सांस छोड़ना। श्वसन को दैहिक क्रिया माना जा सकता है, जिसमें ऑक्सीजन तथा कार्बन डाई ऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है। किंतु योग के ग्रंथ कहते हैं कि श्वसन ऑक्सीजन एवं कार्बन डाई ऑक्साइड के आदान-प्रदान से भी अधिक है। श्वसन एवं श्वास में अंतर है। श्वसन शारीरिक प्रक्रिया है किंतु श्वास व्यक्ति के जीवन तथा बाहर की विराट प्रकृति से संबंधित है। यह समझने से जीवन को अधिक सार्थक रूप से नियमित करने में सहायता होगी तथा स्वास्थ्य, सौहार्द एवं आनंद प्राप्त होगा। श्वास एवं प्राण दो भिन्न किंतु आपस में जुड़े हुए विचार हैं। जीवनी शक्ति प्राण श्वास पर निर्भर करती है। श्वास के बिना प्राण नहीं होंगे। प्राण शरीर एवं मस्तिष्क के मध्य सेतु का कार्य करते हैं। शरीर एवं मस्तिष्क प्राण के माध्यम से एक दूसरे से संचार करते हैं। शरीर प्राण के प्रवाह में परिवर्तन के माध्यम से मस्तिष्क को प्रभावित करता है और मस्तिष्क भी ऐसा ही करता है। जैसा कि पहले कहा गया है, श्वास की गति एवं आवर्तन प्राण को प्रभावित करती है। इससे संकेत मिलता है कि प्राण (प्राणमयकोश) को प्रभावित कर श्वास की गति एवं आवर्तन देह (अन्नमयकोश) तथा मस्तिष्क (मनोमयकोश) को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि प्राण, शरीर एवं मस्तिष्क के अस्तित्व हेतु श्वास अत्यावश्यक है।
योग में सांस का नियंत्रण
श्वास को नियंत्रित एवं नियमित कर प्राण को नियंत्रित एवं नियमित किया जा सकता है। इससे योगी अस्थिर तथा आकांक्षाओं एवं कल्पनाओं की दिशा में दौड़ने के लिए आतुर मस्तिष्क पर नियंत्रण करने में सक्षम होते हैं। किंतु जब प्राण पर नियंत्रण होता है तो मस्तिष्क अपनी प्रकृति छोड़ देता है तथा अपनी दिशा परिवर्तित कर अपने स्रोत की ओर मुड़ जाता है। इसीलिए प्राण पर नियंत्रण हेतु श्वास, जो श्वसन से संबंधित है, को नियंत्रित एवं नियमित करना होता है।
श्वसन सांस लेने एवं सांस छोड़ने की क्रिया है। यह दो शारीरिक क्रियाओं सांस लेने एवं सांस छोड़ने से मिलकर बनती है। सांस लेने से ऑक्सीजन भीतर आती है और सांस छोड़कर कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर निकाल दी जाती है। श्वसन उपापचय की प्रक्रिया में सहायता करता है, जिसके द्वारा प्राणी को जैविक अणुओं से ऊर्जा प्राप्त होती है और यह क्रिय कोशिकाओं तथा ऊतकों में होती है।
श्वसन पर मस्तिष्क के पश्च भाग में स्थित केंद्र द्वारा नियंत्रण किया जाता है। इस भाग का कार्य उन पेशियों को सक्रिय करना होता है, जो सांस लेने तथा सांस छोड़ने का कार्य करती हैं। मस्तिष्क श्वसन पर नियंत्रण करता है तथा शरीर एवं मस्तिष्क के सुचारु कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सुचारु कामकाज के लिए इसे ऑक्सीजन की अबाध एवं समुचित आपूर्ति की आवश्यकता होती है, जो सही तरीके से श्वसन के द्वारा ही संभव है।
यह देखा गया है कि जब कोई व्यक्ति व्यथित, उत्तेजित अथवा क्रोधित होता है तो श्वसन गति तेज होती है और जब वह शांत, स्थिर एवं निश्चिंत होता है तो गति धीमी हो जाती है। तनाव होने पर श्वसन गति बढ़ जाती है तथा व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव होता है।
सांस और प्राणायाम
इस संदर्भ में प्राणायाम बहुत प्रासंगिक हैं। वे श्वास को नियंत्रित एवं नियमित करने में सहायता करते हैं। वे परानुकंपी तंत्र को प्रभावित करते हैं तथा श्वसन गति को नियमित करते हैं, जिससे मस्तिष्क प्रभावित होता है एवं मन पर नियंत्रण करने में सहायता होती है। योग विज्ञान व्यक्ति को प्राणायाम के द्वारा श्वसन गति कम करने की सलाह देता है। प्राणायाम के नियमित अभ्यास से व्यक्ति श्वसन क्रिया को समझने एवं नियंत्रित करने में सक्षम हो जाता है। प्राणायाम विकारों को टालता भी है और व्यक्ति की आयु बढ़ाता है।