षट्कर्म क्या है – Shatkarma in Hindi
षट्कर्म शब्द दो शब्दों ‘षट्’और ‘कर्म’ से मिलकर बना है। ‘षट्’का अर्थ है छह और ‘कर्म’ का अर्थ है कार्य। आयुर्वेद में ‘कर्म’का अर्थ होता है शोधन जिसे आयुर्वेदिक पद्धति में पंचकर्म चिकित्सा कहते हैं। षट्कर्म में शुद्धिकरण क्रियाएं शरीर को भीतर से स्वच्छ एवं साफ करने और योग साधक को उच्च योग क्रियाएं करने के लिए तैयार करने हेतु बनाई गई हैं। षट्कर्म शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए एक उम्दा योगाभ्यास है।
हठप्रदीपिका में 6 षट्कर्म का उल्लेख आता है। ये हैं:
- धौति
- वस्ति
- नेति
- त्राटक
- नौली
- कपालभाति
आधुनिक चिकित्सा में षट्कर्म – Shatkarma in modern medicine
आज कल षट्कर्म या शुद्धि क्रिया योग में चिकित्सा समुदाय की बहुत रुचि जगी है। आधुनिक चिकित्साशास्त्रियों द्वारा किए गए विभिन्न अध्ययनों से यह बात साबित हो गया है कि विभिन्न रोगों की रोकथाम में षट्कर्म के लाभ होने की बात स्वीकार की है। षट्कर्म क्रियाएं शरीर से विषैले पदार्थ को निकालने में, शरीर की विभिन्न प्रणालियों को सशक्त करने में, उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने में तथा व्यक्ति को विभिन्न रोगों से मुक्त रखने में बड़ी भूमिका निभाती है।
षट्कर्म के फायदे – Shatkarma benefits in Hindi
षट्कर्म के बहुत सारे लाभ हैं। इसके कुछ महत्वपूर्ण फायदे का यहां जिक्र किया जा रहा है।
- षट्कर्म या शोधन योग क्रिया एक ऐसी योगाभ्यास है जो शरीर को शुद्ध करने के में अहम् भूमिका निभाती है।
- हठयोग के अनुसार शुद्धि क्रिया योग शरीर में एकत्र हुए विकारों, अशुद्धियों एवं विषैले तत्वों को दूर कर शरीर को भीतर से स्वच्छ करती है।
- उच्चतर योग साधना की दिशा में यह एक पहला चरण है।
- शुद्धिकरण योग शरीर, मस्तिष्क एवं चेतना पर पूर्ण नियंत्रण का भास देता है।
- शोधन क्रियाएं स्वच्छ करने की क्रियाओं और तकनीकों की बात करता है, जिनसे शरीर भीतर से स्वच्छ होता है।
- ये प्रक्रियाएं मनुष्य को प्रत्येक स्तर पर शक्तिशाली एवं व्यापक रूप रोगों से दूर रखता है।
- रोगों, विकारों तथा अशुद्धियों को शरीर से दूर करने के लिए पूरे शरीर के पूर्ण शुद्धिकरण की प्रक्रिया आवश्यक है। जहाँ षट्कर्म अहम भूमिका निभाता है।
- जब शरीर में अत्यधिक विकार हो अथवा शरीर में वात, पित्त तथा कफ का असंतुलन हो तो प्राणायाम और योगासन से पूर्व षट्कर्म करना चाहिए।
- प्राणायाम साधना आरंभ करने से पूर्व सबसे पहले नाड़ी शुद्ध होनी चाहिए जो षट्कर्म दुआरा करनी चाहिए।
- जब शरीर शुद्ध होगा तो रासायनिक घटकों का अनुपात संतुलित रहेगा। इससे मस्तिष्क के कामकाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और शरीर तथा मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में सहायता मिलेगी।
- शुद्धि करण से मस्तिष्क को शांत रखने एवं बेचैनी, सुस्ती, नकारात्मक विचारों तथा भावनाओं को दूर करने में सहायता मिलती है। जब मस्तिष्क शांत एवं सतर्क होता है तो जागरुकता का स्तर सरलता से बढ़ाया जा सकता है।
- षट्कर्म तनाव से लड़ने एवं स्वास्थ्य सुधारने में सहायता करते हैं। वे विश्राम प्रदान कर तनाव कम करते हैं।
- षट्कर्म की छह प्रमुख क्रियाओं में धौति (कुंजल एवं वस्त्रधौति) क्रिया संपूर्ण पाचन का शोधन करती है और साथ ही साथ यह अतिरिक्त पित्त, कफ, विष को दूर करती है तथा शरीर के प्राकृतिक संतुलन को वापस लाती है।
- वस्ति, शंखप्रक्षालन तथा मूलशोधन से आंतें पूरी तरह स्वच्छ हो जाती हैं, पुराना मल एवं कृमि दूर हो जाते हैं, पाचन विकारों का उपचार होता है।
- नियमित रूप से नेति क्रिया करने पर कान, नासिका एवं कंठ क्षेत्र से गंदगी निकालने की प्रणाली ठीक से काम करती है तथा यह सर्दी एवं कफ, एलर्जिक राइनिटिस, ज्वर, टॉन्सिलाइटिस आदि दूर करने में सहायक होती है। इससे अवसाद, माइग्रेन, मिर्गी एवं उन्माद में यह लाभदायक होती है।
- नौली क्रिया उदर की पेशियों, तंत्रिकाओं, आंतों, प्रजनन, उत्सर्जन एवं मूत्र संबंधी अंगों को ठीक करती है। अपच, अम्लता, वायु विकार, अवसाद एवं भावनात्मक समस्याओं से ग्रस्त व्यक्ति के लिए लाभदायक है।
- त्राटक नेत्रों की पेशियों, एकाग्रता तथा मेमोरी के लिए लाभप्रद होती है। इसका सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव मस्तिष्क पर होता है।
- कपालभाति बीमारियों से दूर रखने के लिए रामबाण माना जाता है। यह बलगम, पित्त एवं जल जनित रोगों को नष्ट करती है। यह सिर का शोधन करती है और फेफड़ों एवं कोशिकाओं से सामान्य श्वसन क्रिया की तुलना में अधिक कार्बन डाईऑक्साइड निकालती है। कहा जाता है कि कपालभाति प्रायः हर रोगों का इलाज है।
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शोधन क्रिया को जिस हिसाब से आपने बताया है वह काबेलिए तारीफ है