
प्राणायाम शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक लाभ के लिए जाना जाता है। यह अच्छा होगा अगर आप प्राणायाम किसी विशेषज्ञ के दिशा-निर्देश में करते हैं। इससे आपको फायदे भी मिलेंगे और साथ ही साथ इसको सीख भी जायेंगे।
प्राणायाम का अभ्यास करने के लिए कुछ चीजों का ध्यान जरूर रखें। इसके लिए उचित स्थान, सही समय, अल्पाहार, सूर्य प्रकाश एवं धैर्य का होना बहुत जरूरी है।
प्राणायाम के लिए क्या जरूरी है ? What is needed for pranayama?
स्थान
प्राणायाम के लिए वह जगह उप्युक्त है जो खुला खुला हो, ध्वनि रहित और जो आपके शरीर को बाधा दें उन चीजों से मुक्त हो।
मौसम
सच तो यह है कि प्राणायाम के दौरान किसी तरह का अवरोध उत्पन्न नहीं होना चाहिए। प्राणायाम सालों भर या वसंत, ग्रीष्म , वर्षा , शरद, हेमंत, और शिशिर में किया जा सकता है। फिर भी शास्त्रों के अनुसार वसंत ऋतु ( मार्च- अप्रैल ) और पतझड़ का मौसम ( सितंबर-अक्टूबर) में प्राणायाम का शुरू करना उम्दा माना गया है।
समय
प्राणायाम के लिए सबसे अच्छा समय सुबह का होता है। शुरुवाती दौड़ में प्राणायाम 5 से 15 मिनट तक कर सकते हैं। फिर धीरे धीरे आप इसकी समय सीमा को बढ़ा सकते हैं। लेकिन एक बात ध्यान रहना चाहिए कि प्राणायाम और भोजन के बीच चार घंटे का अंतराल हो।
बैठने का स्थान
जहाँ पर आप प्राणायाम करते हैं वह स्थान मुलायम, मोटा, तापमान अवरोधक होना चाहिए। बेहतर होगा अगर आप इसको बैठ कर योग मैट पर करते हैं।
तकनीक
सबसे जरूरी चीज है प्राणायाम की तकनीक। प्राणायाम का अभ्यास सही तरीके से हो। यदि प्राणायाम को गलत तरीके से किया जाए तो इससे नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए यह आवश्यक है कि बिना तकनीक को समझे प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
प्राणायाम को सही तरीके से करने से आप बहुत प्रकार के रोगों से दूर रह सकते हैं। लेकिन गलत तरीके कई प्रकार की बीमारी भी हो सकती है जैसे दमा, सर्दी-जुकाम, सिर में दर्द, आंख और कान में दर्द भी हो सकता है।
पूरक, कुम्भक, रेचक
पूरक का मतलब होता है सांस का लेना, कुम्भक का मतलब होता है सांस को रोकना, रेचक में सांस को छोड़ा जाता है। प्राणायाम के दौरान पूरक, कुम्भक और रेचक का अनुपात 1:4:2 होना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आप 10 सेकंड तक सांस लेते हैं तो 40 सेकंड तक रोके और 20 सेकंड तक सांस को छोड़ते रहें। हालांकि नए साधकों के लिए ये अनुपात 1:2:2 होना चाहिए।
आयु
प्राणायाम का अभ्यास 12 वर्ष की आयु के बाद होना चाहिए।
योगिक भोजन। Yogic food
योग साधक को साफ एवं शुद्ध भोजन करना चाहिए।
योग के अनुसार भोजन तीन तरह का होता है- सात्विक, राजसिक एवं तामसिक
सात्विक भोजन : वह भोजन जो ज्यादा गर्म या ठंडा ना हो जिस भोजन में हरी और ताजा सब्जियां हों। वह भोजन जो हल्का एवं पचाने में आसान हो। वह भोजन जो शुद्ध, स्वस्थ, खुशी प्रदान करने वाला हो सात्विक भोजन कहलाता है।
राजसिक भोजन : वह भोजन जो खट्टा, तीखा, ज्यादा पकाया हुआ, मसालों से भरपूर होता है वह राजसिक भोजन कहलाता है।
तामसिक भोजन : इस प्रकार का भोजन लंबे समय के लिए तैयार किया जाता है। इस प्रकार के भोजन में पोषकता और पवित्रता की कमी होती है। इससे शरीर में शिथिलता आती है।
मिताहार
मिताहार का मतलब होता है हल्का खाना।
भोजन की गुणवत्ता
यह सात्विकता से परिपूर्ण होनाचाहिए और प्राकृतिक रूप में होना चाहिए।
भोजन की मात्रा
पेट 50 % भोजन से 25 % तरल पदार्थ से भरा होना चाहिए जबकि बाकी बचा एक चौथाई हिस्सा खाली होना चाहिए। भोजन करते समय मन शांत और सभी प्रकार के तनाव से दूर रहना चाहिए। भोजन धीरे धीरे ग्रहण करें और देर तक चबाएं।
स्वस्थ रहने के लिए सरल प्राणायाम। Pranayama for healthy living
- नाड़ी शोधन प्राणायाम
- भस्त्रिका प्राणायाम
- उज्जयी प्राणायाम
- सूर्य भेदन प्राणायाम
- शीतकारी प्राणायाम
- शीतली प्राणायाम
- भ्रामरी प्राणायाम
- प्लाविनी प्राणायाम
- मूर्छा प्राणायाम